एक दुआ सावन की पहली झड़ी थी,, सुनीता को अस्पताल से कल ही छुट्टी मिली थी,, नन्ही रानू को मालिश कर दाई माँ ने कुनकुने पानी ने नहला दिया था,, दूध पिलाकर सुनीता ने उसे सुलाकर उठी ही थी कि दरवाज़े पर दस्तक के साथ आवाज़ आई - दीदी जी,, ओ दीदी,, कहाँ गयी??? सावन का चंदा और लक्ष्मी के आने का नेग लूंगी हा,, आवाज़ सुनते ही सुनीता ने अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । सुनीता की सास लता बड़बड़ाती बाहर आई,,, अरे ,,, काहे का नेग??? दूसरी बार बेटी जनी,,,, बेटा पैदा होता तो मुँहमाँगा इनाम देती मैं,,,इसके तो जन्म से ही ब्याह की चिंता होने लगी है ।* सुनीता की सास के कटाक्ष सुनते ही हीरा बोली - *अरे अम्मा शुक्र मनाओ कि बिटिया हुई,, हमारे जैसी कलंकित जिंदगी तो नही जिएगी बिटिया रानी,, अरे उसे पढाने -लिखाने और शादी की हैसियत नही आपकी तो हमें दे दो,,हम करेंगे इसकी परवरिश* ,, हीरा की बात सुनकर सुनीता रानू को अपनी गोद मे लेकर बाहर आकर हीरा से कहती है - मौसी,, मेरी बिटिया को आशीर्वाद दो । रानू की बलैया लेती हीरा कहती है *बिटिया पढ़कर इतना नाम कमाए कि जिंदगी भर किसी पर बोझ न बने । जाते-जात...