लेखक: अंजली खेर द्वारा लिखित
भाग ०२
अब आगे क्या,, ??,,,,, जी हां हम सभी की भागती-दौड़ती तेज़ रफ्तार जिंदगी को अचानक से पूर्ण विराम लगा ‘’कोरोना’’ नामक अदृश्य जानलेवा शत्रु ने हमारे समक्ष ये प्रश्न लाकर खड़ा कर दिया हैं । आज हर आयुवर्ग अपने भवितव्य को लेकर विंतातुर जान पड़तेs हैं ।
नि:संदेह एक लंबे अंतराल का लॉक डाउन पीरियड और उसके बाद हौले-हौले जिंदगी को पटरी पर लाने की जद्दोजहद,,,,किुतु अफ़सोस कि अब हमारी जिंदगी दो हिस्सों में बंट गयी हैं, एक कोरोना के पहले वाला बिंदास और सरपट भागता जीवन और दूसरी ओर कोरोना के बाद वाली मंद गति से आगे बढ़ती और थमी-सहमी सी जिंदगी ।
बेशक इस अंतहीन संकट के दौर से गुज़रना आसान नहीं, पर परिस्थितियां चाहे जैसी हो, जीवन नैया भले धीमी गति से चले, चलती ही रहती हैं क्योंकि जिंदगी चलने का नाम हैं । यह बात सोलह आने सच हैं कि ‘’कोरोना’’ के साथ जिंदगी जीने के ब्रम्ह सत्य को हम सभी ने स्वीकार करना ही होगा, वरना नकारात्मकता का लेश मात्र भी हमारे जीवन के अस्तित्व को समाप्तप्राय करने में कोई कोताही नहीं बरतेगा ।
कोरोना लॉकडाउन के प्रारंभिक चरण में सोशल मीडिया और व्हाट्सअप पर तरह-तरह की अफवाहों, भ्रामक तथ्यों और नकारात्मकता से ओतप्रोत खबरों के अनवरत् दौर ने भले ही लोगों के मन-मस्तिष्क में संभावित खतरों के प्रति अत्यधिक खौफ़ का बीजारोपण कर दिया दिया, पर हममें से कई ऐसे हैं, जिन्होंने चहुंओर व्याप्त दहशतगर्ज माहौल में भी न केवल अपने आत्मविश्वास का अलख जगाएं रखा वरन् अपने कार्यो के माध्यम से समाज में नव-चेतना का संचार किया ।
कुछ दिन पहले सोशल मीडि़या पर एक मैसेज वायरल हो रहा था –‘’मैने आंखों से ही मुस्कुराना सीख लिया हैं, क्या करें अब लब मास्क के पीछे जो रहने को मज़बूर हैं ।‘’ बहरहाल सच भी हैं, परिस्थितियों का रोना रोने के बजाय उनसे सामंजस्य कर जीवन की गति को बनाएं रखने की मानसिकता विकसित करना ही जिंदगी का दूसरा नाम हैं । फिर कहा भी गया हैं कि जीवटता यानि ‘’विल पॉवर’’ किसी भी बड़े से बड़े मर्ज़ की सबसे सटीक दवा हैं, जो व्यक्ति मन से हार गया, जो जिंदगी से हार गया और जिसने मन को जीत लिया, वो किसी भी असाध्य बीमारी को परास्त करने की अद्भभुत शक्ति रखता हैं ।
घर में युवा बच्चों के माध्यम से आज उनकी समस्याओं को निकटता से रूबरू होने का अवसर मिलने पर ज्ञात होता हैं कि बेशक देश के अर्थतंत्र की नींव धाराशायी होने की वजह से निकट भविष्य में उनके आत्मनिर्भरता के सपने ध्वस्त होते से जान पड़ते हैं, फिर भी ऐसी विषम स्थिति में आत्मबल की क्षीणतम आस को बखूबी थामें कुछ युवाओं ने ऑन लाइन एंटर्नशिप ज्वाइन कर रखी हैं, जिसने जुड़कर नित नये रचनात्मक कार्यो जैये कंटेट राइटिंग, ब्लॉग्स राइटिंग में खुद को व्यस्त रखा हैं । कुछ युवाओं ने जिंदगी के लिए अत्यावश्यक बन पड़े मास्क को ही सुंदर आकर्षक और हाइजीन की दृष्टि से सुरक्षित और बहुत ही वाजि़ब दामों में बाज़ार में उपलब्ध कराने का सृजनात्मक कार्य भी किया, वहीं अभी हाल एक युवा ने थ्री-डी मास्क का डिज़ाइन बनाया हैं जिससे पहनने वाले का चेहरा बाहर से दिखाई देगा ।
इस प्रकार युवा अपनी रचनात्मकता और कल्पनाशीलता का भरपूर परिचय देते हुए समाज में संदेश प्रसारित कर रहे हैं कि ‘’चिर-स्थायी कुछ भी नहीं, ये समय का चक्र गतिमान हैं, सदैव एक सा नहीं होता, सो जिस तरह अंधियारी भयावह काली रात के बाद ऊर्जामय, सौम्य रवि-रश्मियों के साथ नवभोर का आगमन निश्चित हैं, वैसे ही इस जटिल कठिन समय पश्चात सुखद समय भी आवेगा । आवश्यकता हैं तो बस आत्मविश्वास व धैर्य को बनाएं रख, अपनी जिम्मेदारियों को शिद्दत से निबाहने की ।‘’
बेशक ऐसे जटिल दौर में साहित्यकारों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती हैं । भारत के इतिहास पर दृष्टि डालें तो जब-जब देश पर आपत्ति के घनघोर बादल मंडराएं हैं, तब-तब देश के साहित्यकारों ने समाज को नई दिशा प्रदान करने, लोगों में सकारात्मकता का अलख जगाने रखने, अपनी कलम की धार पैनी की और ऐसे साहित्य का सृजन किया, जिसे पढ़कर न केवल पाठकों के मन में व्याप्त भय, दहशत समाप्तप्राय हो जाता वरन् वे नख-शिखांत ऊर्जसित हो जाया करते और कितनी ही विपरीत परिस्थिति में सदैव आशावान रहने के गुण से ओतप्रोत हो जाते थे । आज सोशल मीडि़या पर गीतों के माध्यम से लोगों को इस अदृश्य खौफ़ से ड़रने के बजाय उससे बचाव और सुरक्षा का संदेश प्रसारित होते देखे जा सकते हैं ।
वर्तमान में भी कई ऐसे साहित्यिक समूह हें, जिनके सदस्य अपनी-अपनी विधाओं में समूह के सदस्यों के बीच पत्र-लेखन, स्लोगन, कविता, आलेख, हाइकू, लोकगीत आदि पर आधारित प्रतियोगिताओं का आयोजन कर रहे हैं, इससे न केवल समूह के सदस्य रचनात्मक कार्यो में व्यस्त होते हैं, बल्कि खाली समय में मस्तिष्क में पसरने वाली नकारात्मकता का लेशमात्र भी अंकुरण नहीं होने पाता ।
’’दो गज की दूरी, अभी हैं जरूरी’’ जी हां, इस दूरी यानि सोशल डिस्टेंसिंग को बरतने के लिए कई दुकानदारों ने अपने-अपने हिसाब से नये नये तरीके अपनाएं । जैसे किसी दुकानदार ने उनकी दुकान से सामान खरीदने के लिए ग्राहकों को साथ में छाता लाना आवश्यक कर दिया । किसी दुकानदार ने ग्राहकों से सामान की लिस्ट लेकर पाइप के माध्यम से ग्राहकों के थैलों में सामान पहुंचाने की जुगत लगाई, इन तरीकों के माध्यम से दुकानों पर अनावश्यक रेलमपेल की गुंजाइश खत्म हो गई ।
हमारे देश की एक विशेषता हैं कि जब भी कोई देश-व्यापी संकट का आगाज़ होता हैं तो हर देशवासी एक-जुट हो, अपने-अपने स्तर पर बढ़चढ़कर अपने दायित्वों का निर्वहन करने में कभी पीछे नहीं हटते । इस कड़ी में देश की बेटियों, युवा व प्रौढ़ महिलाओं ने भी अपनी सशक्त भूमिकाओं का प्रदर्शन कर भारत मां का सिर गर्व से अभिभूत कर दिया । अपने पिता से मिलने कार्यस्थल पर पहुंची नन्हीं बिटिया का कोरोना योद्धापुलिस कर्मी को देखते ही सेल्यूट करना, एक आई ए एस ऑफीसर का अपनी एक माह की बिटिया को लेकर कार्यालय में कार्यभार संभालना, अभी तक समाचार पत्रों में प्रकाशित सकारात्मक खबरों की कटिंग एकत्र का एक मिडिल स्कूल की छात्रा का कोरोना काल में एक पुस्तक प्रकाशित किये जाने की उत्तम पहल और एक बुजुर्ग महिला का घर पर प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा मास्क बनाकर जरूरतमंदों में मुफ्त बांटने की खबरें सुर्खियों में छायी रही ।
शारीरिक अक्षमता सद्कर्मो के आड़े नहीं आती, मनुष्य अपनी वृहत् सोच और सुलझे विचारों से शारीरिक पूर्णता को प्राप्त करता हैं । जी हां, पंजाब के एक दिव्यांग भाई अपनी छोटी-छोटी बचतों से बेसहारा – बेघर लोगों को मास्क मुहैया करा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर एक किसान भाई अपने ट्रेक्टर में ही सेनेटाइज़र मशीन जोड़कर अपने गांव को सेनेटाइज़ करने का काम कर रहे हैं ।
कई जिलों में पुलिस विभाग ने रहवासियों के बीच कोरोना से बचाव की विषयवस्तु पर आधारित निबंध, स्लोगन, कवितालेखन आदि पर बच्चों में प्रतियोगिता आयोजित कराई, इससे न केवल छोटे बच्चों ने कोरोना वाइरस के बारे में विस्तार से समझा, पढ़ा और उसे जाना अपितु वे इससे बचने के लिए सावधानियां और सुरक्षा उपायों को समझकर उन्हें अपने अनुसार शब्दों में ढ़ालने संबंधी रचनात्मक कार्यो में व्यस्त भी रहे ।
एक-दूसरे के प्रति करूणाभाव तो जैसे हम भारतीयों को अपने पुरखों से विरासत में मिला गुण हैं, तभी तो परिस्थितियों की मार से विचलित भूखे-प्यासे, नंगे पैर अपने गृहनगर की ओर पैदल ही चलने को उतारू हो चले मजदूरों के लिए जुगत लगाते कई लोगों ने अपनी सोसाइटी के लोगों से पुराने जूते-चप्पलें एकत्र की और शहर के बाहरी हिस्सों में ले जाकर उन मजबूरों में बांटी ।
नि:संदेह कोरोना ने भले ही हमारे जीवन को छिन्न-भिन्न करने में कोई कोर-कसर बाकी न रखी हो, पर हमें यह जान लेना चाहिए कि दुनिया में हजारों की तादाद में ऐसे वाइरस हैं जिनसे निज़ात पाने के लिए आज तक कोई दवा या वैक्सीन आज दिनांक तक नहीं बनी हैं, हा ये बात और हैं कि उन वाइरस की तुलना में कोरोना अधिक भयावहता लिए हुए हैं । किंतु मात्र चिंता करने, घबराने या जिंदगी से हार मानने के बजाय समस्या से बचाव और सुरक्षा के उपायों को अपने स्वभाव में सम्मिलित करने के साथ ही स्वयं को नकारात्मकता से दूर बनाये रखने और अपनी रचनात्मक क्षमतओं को परिवर्धित करने हेतु सतत् प्रयासरत् रहना ही हमारे लिए हितकर होगा ।
अंत में यही कहना उचित होगा कि ‘’ और भी हैं राहें,,, फिर कोरोना से क्यों हारें ??
लेखक: अंजली खेर
संपर्क करें:9425810540
प्रकाशक: अनफोल्ड क्राफ्ट
पुरी तरह सहमत। nice
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